ये शहर मुझे रास न आया
यूँ जिने का अहसास न आया
क्या पाया क्या खोया मैने
कोई भी तो पास न आया
सबकुछ था फिर भी मुझ को
रहनसहन का मिजास न आया
बुत बनकर यूँ बैठे हैं कि
दिल में उम्मीद-ओ-यास न आया
हाल बयाँ करने का जुनूँ था
लफ्जों में कुछ खास न आया
- प्रमोद माने
१४|०२|२०२४
बुत= पुतळा
उम्मीद-ओ-यास = आशा आणि निराशा
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